क्या है मेरा मज़ब में समझ नहीं पाया ..
मिलता था सुकून श्री राम कहने से ..
तोह उठता था जूनून दिल में अल्लाह कहने से ..
क्या है मेरा ईमान में समझ नहीं पाया ...
ठिकाना भी सबका एक है..
मंजिल भी सबकी एक है...
चुरा लोगे यहाँ नज़ारे हमसे....
फेर लोगे मुंह भी यहाँ हमसे ...
कैसे बचोगे उस जहान से जहाँ मिल कर हमसे आपने होना एक है...
सब यहाँ कोसते है किस्मत को ...
में तो उठीक रहा हूँ अपनी उस हसरत को .....
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