किसी ने कहा बुरा ROHIT है .. किसी ने कहा बुरा वक़्त था ...
किसी ने दिया सहारा ..तो किसी का रवियअ बहुत सख्त था ..
कभी रोई थी आन्खिएन ...रोया दिल भी बहुत था ...
हर तरफ छाया था अँधेरा ...
उम्मीद नहीं थी के आएगा कोई उजला सवेरा ...
सोच लिया था के अब तोह ग़मों ने लगा लिया है इस दिल में डेरा ..
चले जा रहे थे उस मालिक के रास्ते ...
ना मंजिल का पता था ना फंसलों का ...
जीना आता नहीं था मरने का होंसला नहीं था . ..
बहते आंसूं का ना था कोई किनारा . ....
पहले तोह बत्कता था इधर उधर ...अब तोह ये दि भी नहीं था आवारा ...
बिछढ़ना आपसे भी कहाँ था गंवारा ...
उपरवाले की हरक़त का भी किसे पता था ....
लोग समझते रहे पानी वो नीर नहीं मेरा रक्त था ....
किसी ने कहा बुरा ROHIT है ......किसी ने कहा बुरा वक़्त था .......
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